किसी के न हुए तेरे जाने के बाद
पहचान भी न पाओगे आने के बाद
वक्त - ए - गुरबत ज़िंदा कहां छोड़ेगी
कुछ भी तो नहीं बचता वक्त गुज़र जाने के बाद
तुझे गुरूर हमें उसूलों ने बांध रखा है
बात वैसे भी बनती कहां है बिगड़ जाने के बाद
अब मेहफिलें भी वीरानी सी दिखाई देती हैं
ये ही मुमकिन हुआ तेरे उधर जाने के बाद
गरूर झूठा ही सही उम्मीद लगा रखी थी
खामोश तो तब हुए तेरे मुकर जाने के बाद
दुश्मनी लाख करो मगर दायरा भी हो
दूर हो जाता है हर कोई दिल से उतर जाने के बाद
शायर - बाबू कुरैशी
#हम कहां किसी के