सूरज की किरण ओझल होने लगी हैं
हवायें मगरूर होकर बहने लगी हैं
महक मिट्टी की अब आने लगी हैं
लगता हैं शहर में बरसात होने लगी हैं
बादलों की लुकाछिपी होने लगी हैं
दिन में भी रात सी होने लगी हैं
शोला बनकर बिजलियाँ गिरने लगी हैं
लगता हैं शहर में बरसात होने लगी हैं
हलचल दिल में होने लगी हैं
धड़कन मेरी बढ़ने लगी हैं
याद मुझे तेरी आने लगी हैं
लगता हैं शहर में बरसात होने लगी हैं
✍✍प्रवीन देवचंद फुलझेले
©pravin fulzele
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