आओ हम तुम जाकर बैठें, उस हृदय तरु के आँचल में, चले | हिंदी Shayari

"आओ हम तुम जाकर बैठें, उस हृदय तरु के आँचल में, चलें किसी चंचल धारा जैसे, जीवन के इस मरुथल में । हिमकर के स्वर्णिम सपनों में, मैं खोया था, थी अमा रात, तुम आईं बनकर अरूण दीप, तम ही तम था, जीवन तल में । ये अंबर था वीरान बहुत, संध्या गहरी होती थी क्षण क्षण में, ये मेघ चले थे कुछ अकुलाये से, ज्यों नयन नीर हो काजल में । सब हुआ मौन, सब गया ठहर अब, जैसे मन हो निर्जन वन में, अब क्या यथार्थ अब क्या स्वप्न, सबकुछ सिमटा है इस पल में । ©Rajat Pratap Singh"

 आओ हम तुम जाकर बैठें, उस हृदय तरु के आँचल में,
चलें किसी चंचल धारा जैसे, जीवन के इस मरुथल में ।

हिमकर के स्वर्णिम सपनों में, मैं खोया था, थी अमा रात,
तुम आईं बनकर अरूण दीप, तम ही तम था, जीवन तल में ।

ये अंबर था वीरान बहुत, संध्या गहरी होती थी क्षण क्षण में,
ये मेघ चले थे कुछ अकुलाये से, ज्यों नयन नीर हो काजल में ।

सब हुआ मौन, सब गया ठहर अब, जैसे मन हो निर्जन वन में,
अब क्या यथार्थ अब क्या स्वप्न, सबकुछ सिमटा है इस पल में ।

©Rajat Pratap Singh

आओ हम तुम जाकर बैठें, उस हृदय तरु के आँचल में, चलें किसी चंचल धारा जैसे, जीवन के इस मरुथल में । हिमकर के स्वर्णिम सपनों में, मैं खोया था, थी अमा रात, तुम आईं बनकर अरूण दीप, तम ही तम था, जीवन तल में । ये अंबर था वीरान बहुत, संध्या गहरी होती थी क्षण क्षण में, ये मेघ चले थे कुछ अकुलाये से, ज्यों नयन नीर हो काजल में । सब हुआ मौन, सब गया ठहर अब, जैसे मन हो निर्जन वन में, अब क्या यथार्थ अब क्या स्वप्न, सबकुछ सिमटा है इस पल में । ©Rajat Pratap Singh

#Nightlight #Love #poem

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