चुनावी रागणी - शतुरमुर्ग*
विकास का मुद्दा ठावण आळी, वा पार्टी पड़कै सो ली
जो सरकार बणाई थी वा, मनै पाँच बरस तक रो ली
शाल दुशाले काम्बळ काळे, मनै धर लिए तह लगाकै
देशी इंग्लिश की पेटी भी, मनै धर ली गिणा गिणाकै
अरै वोट कितै और चोट कितै, मैं आग्या बटण दबाकै
नाच नाच कै ढोल बजाया, मनै पंगु सरकार बणाकै
इब शतुरमुर्ग की तरिया मनै, रेत में नाड़ गडो ली
जो सरकार बणाई थी वा, मनै पाँच बरस तक रो ली
देख देख कै नोटां की तह, मनै मन की लौ बुझा दी
अरै बेगैरत की ढाळ आत्मा, देकै लोभ सुवा दी
ले ले कै नै नोट करारे, मनै बोगस वोट घला दी
ज़मीर बेचकै सोदा पाड़या, बोटां की झड़ी लगा दी
इब पछता कै के फायदा जब, पाप में टाँग डबो ली
जो सरकार बणाई थी वा, मनै पाँच बरस तक रो ली
कदे धर्म पै कदे जात पै, कदे माणस ऊपर हार गया
कदे नामा कदे जड़ का सामा, वोट के ऊपर वार गया
कदे इंग्लिश कदे घर की काढी, गळ के नीचै तार गया
झूठ कपट बेईमानी का नश्तर, सबके भीतर पार गया
सच की घीटी पै पांह धरकै, मनै पाप की गठड़ी ढो ली
जो सरकार बणाई थी वा, मनै पाँच बरस तक रो ली
सही समय पै सही माणस नै, चुणने में हम फेल रहे
गुरु पालेराम की बोट की खातिर, बड़े बड़े पापड़ बेल रहे
अपणी बात बणावण खातिर, झूठ बवण्डर पेल रहे
पाप की लकड़ी, सच की गिंडु, टोरम टोरा खेल रहे
"आनन्द शाहपुर" चेत खड़या हो, क्यूँ नाश की राही टोह ली
जो सरकार बणाई थी वा, मनै पाँच बरस तक रो ली
कॉपीरा
©Anand Kumar Ashodhiya
#हरयाणवी हरयाणवी रागनी चुनावी शतुरमुर्ग कविता व्यंग