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मैंने उन्मुक्त प्रेम को बांधना चाहा
किनारे तटबंध बनाये,बांध बनाये
बहुत समझाया अंतर्मन को
परंतु प्रेम तो नीर जैसा था
रिस रहा था,न चाह कर भी न रोक सकी
अगाध प्रेम को न बांध सकी
और प्रवाह ने तोड़ दिये सारे बंधन
ये हृदय बांध न सका तुम्हारा प्रेम
और नेत्रों में छलक आया
न चाह कर भी न छुपा सकी तुम्हारा प्रेम
और तुम्हारे प्रेम के प्रवाह में खुद भी बहती चली गयी .....
©Richa Dhar
#love_shayari उन्मुक्त प्रेम