White मैंने उन्मुक्त प्रेम को बांधना चाहा किनारे | हिंदी कविता

"White मैंने उन्मुक्त प्रेम को बांधना चाहा किनारे तटबंध बनाये,बांध बनाये बहुत समझाया अंतर्मन को परंतु प्रेम तो नीर जैसा था रिस रहा था,न चाह कर भी न रोक सकी अगाध प्रेम को न बांध सकी और प्रवाह ने तोड़ दिये सारे बंधन ये हृदय बांध न सका तुम्हारा प्रेम और नेत्रों में छलक आया न चाह कर भी न छुपा सकी तुम्हारा प्रेम और तुम्हारे प्रेम के प्रवाह में खुद भी बहती चली गयी ..... ©Richa Dhar"

 White 
मैंने उन्मुक्त प्रेम को बांधना चाहा
किनारे तटबंध बनाये,बांध बनाये
बहुत समझाया अंतर्मन को
परंतु प्रेम तो नीर जैसा था
रिस रहा था,न चाह कर भी न रोक सकी
अगाध प्रेम को न बांध सकी
और प्रवाह ने तोड़ दिये सारे बंधन
ये हृदय बांध न सका तुम्हारा प्रेम
और नेत्रों में छलक आया
न चाह कर भी न छुपा सकी तुम्हारा प्रेम
और तुम्हारे प्रेम के प्रवाह में खुद भी बहती चली गयी .....

©Richa Dhar

White मैंने उन्मुक्त प्रेम को बांधना चाहा किनारे तटबंध बनाये,बांध बनाये बहुत समझाया अंतर्मन को परंतु प्रेम तो नीर जैसा था रिस रहा था,न चाह कर भी न रोक सकी अगाध प्रेम को न बांध सकी और प्रवाह ने तोड़ दिये सारे बंधन ये हृदय बांध न सका तुम्हारा प्रेम और नेत्रों में छलक आया न चाह कर भी न छुपा सकी तुम्हारा प्रेम और तुम्हारे प्रेम के प्रवाह में खुद भी बहती चली गयी ..... ©Richa Dhar

#love_shayari उन्मुक्त प्रेम

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