White अहिंसा परमो धर्मस्त्थाहिंसा परो दमः |
अहिंसा परमं दानम् अहिंसा परम तपः ||
अहिंसा परमो यज्ञस ततस्मि परम फलम् |
अहिंसा परमं मित्रम अहिंसा परमं सुखम् ||
यह श्लोक महाभारत, अनुशासन पर्व, अध्याय 117 – दानधर्मपर्व में लिखा गया है। इसका अर्थ इस प्रकार हैः-
इसका अर्थ है की अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है | वही उत्तम इन्द्रिय निग्रह है | अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ दान है , वही उत्तम तप है | अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ यज्ञ है और वही परमोपलब्धि है | अहिंसा ही परममित्र है , और वही परम सुख है |
लेकिन जब धर्म की रक्षा की बात आती है तब एक और श्लोक भी कहा गया है
"अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तदैव च l"
अर्थात - अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है.. किन्तु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है.
साथ ही अहिंसा सर्वश्रेष्ठ यज्ञ तभी होता है जब उसमे अवश्यकतानुसार हिंसा रूपी हव्य डाला जाये......तभी वह परमोपलब्धि पूरक है।
©Indresh Dwivedi
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