बचपन की कहानियाँ ऊंगलियो के पोरों जैसी होती हैँ, जो जीवन की हथेली पर सबसे आगे बैठी रहती हैँ | कभी इतने भी उदास ना होना की वो कहानियाँ तुम्हारी हथेली से फिसल पड़ें और कहीं खो जायें , क्यूँकि ये कहानियां ही हैँ जो तुम्हारा पता सहेज के रखती हैँ, मृत्युपर्यंत भी
तुम्हें अमर रखती हैँ |
नेहा वशिष्ठ