बचपन की कहानियाँ ऊंगलियो के पोरों जैसी होती हैँ, जो जीवन की हथेली पर सबसे आगे बैठी रहती हैँ | कभी इतने भी उदास ना होना की वो कहानियाँ तुम्हारी हथेली से फिसल पड़े.
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