मन की सारी उलझनें, फिर से हल कर जाओ, किश्तों में ब | हिंदी शायरी

"मन की सारी उलझनें, फिर से हल कर जाओ, किश्तों में बटी खुशियों को, हरपल कर जाओ, तमाम बातें अधुरी रह गई थी, तेरी और मेरी, आओ ना, वो सारी बातें मुकम्मल कर जाओ। ©दुर्गेश"

 मन की सारी उलझनें, फिर से हल कर जाओ,
किश्तों में बटी खुशियों को, हरपल कर जाओ,
तमाम  बातें  अधुरी रह गई थी, तेरी और मेरी,
आओ ना, वो सारी बातें  मुकम्मल कर जाओ।

©दुर्गेश

मन की सारी उलझनें, फिर से हल कर जाओ, किश्तों में बटी खुशियों को, हरपल कर जाओ, तमाम बातें अधुरी रह गई थी, तेरी और मेरी, आओ ना, वो सारी बातें मुकम्मल कर जाओ। ©दुर्गेश

मुक्कमल

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