मैं औरत हूं तुम्हारी
बिन मर्जी ब्याहे गए है हम
अब हमे ज़िन्दगी भर एक दूजे के साथ चलना है
किसी बड़े के सामने तुम दिखो तो पर्दा करना है
उची आवाज में तुमसे मुझे बात नहीं करना है
तुम्हारी पसंद ना पसंद का ख्याल हमेशा रखना है
पर क्या तुम भी उतना कुछ करोगे जो में कर रही हु
क्या तुम भी बिन मर्जी ब्याहे गए हो
क्या तुम भी बस रिश्ते को निभा रहे हो
क्या प्रेम हमारे रिश्ते में मात्र मरीचिका बनकर ही रह गया है
क्या तुम जो बाजार से मेरे लिए लाते हो सामान वो बस एक जरुरत की सज्जा है।
क्या तुम्हे अपने पास पाकर मेरे मुख पर आती है वो झूठी लज्जा है
मर्जी भले हमारी नहीं थी ब्याहने में पर ब्याहे हम गए है
भले नाराज होंगे तुम भी शुरू में पर अब हम अटूट बंधन में बंध गए है
बंधन जो प्रेम का है असली प्रेम जिसे कोई दूर नहीं कर सकता
तुमने मेरी फिक्र है मुझे तुम्हारी ये बंधन अब टूट नहीं सकता
असल में प्रेम और क्या है
क्या किसी की खूबसूरती पर मोहित होना ही प्रेम है
क्या किसी के अच्छे दिखने और दो चिकनी चुपड़ी बाते करने में ही प्रेम है
ऐसे आकर्षण अवश्य कहा जा सकता है
परन्तु प्रेम नहीं
शायद नहीं ये प्रेम नहीं है
प्रेम तर्षणा नहीं है,
प्रेम तो मिठास है जो दो दिलों के मिलने से आती हैं
जो एक दूसरे से सम्मान से उत्पन होती है
जो एक दूसरे की फिकर करने से आती हैं
और ये मिठास दुनिया की किसी भी मिठास से उपर है।
©Rk gurjar
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