तू चलता चल
तू चलता चल,तू चलता चल
होकर पर्वत सा विशाल तू, ले अंचल से मां के प्यार तू
विश्वास बांध अपार तू, जीवन को अब तो तार तू
कब तक गिरेगा धरा पर तू, यू पग पग पर ना मचल
तू चलता चल, तू चलता चल
होकर करुणा का सार तू, अपना बना संसार तू
प्रेम को से विस्तार तू, जीवन का समझ सार तू
कर्म मार्ग पर बढ़ता जा, तू अब होकर अटल
तू चलता चल, तू चलता चल
उच नीच का भाव ना रख, रख सबको समान तू
क्यों अभिमान करता है मानुष, माटी का ही तो है बना तू
कुछ कर जा ऐसा तू जिसको ना सके कोई बदल
तू चलता चल, तू चलता चल
तेरी सीमा का सार नहीं, तेरे बल का पार नहीं
तू अमिट अमर अविनाशी हैं, वीर पराक्रमी साहसी है
बढ़ आगे तू चलना कर प्रारम्भ सीने में जला लें अनल
तू चलता चल, तू चलता चल
:-Rkgurjar
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