वो भी क्या दिन थे ... मम्मी की गोद और पापा की कंध | हिंदी कविता

"वो भी क्या दिन थे ... मम्मी की गोद और पापा की कंधे ना पैसे की सोच ना और , ना ही लाइफ के फंडे कल की चिंता और ना, ही फ्यूचर के सपने लेकिन अब है कल की , फ़िक्र है ,अधूरे हैं सपने पीछे मुड़ के देखा तो बहुत दूर थे वो अपने मंजिल को ढूंढते ढूंढते, कहां खो गए हैं हम क्या सच में इतने, बड़े हो गए हैं हम!"

 वो भी क्या दिन थे ...

मम्मी की गोद और पापा की कंधे
ना पैसे की सोच ना और ,
ना ही लाइफ के फंडे
कल की चिंता और ना,
ही फ्यूचर के सपने
लेकिन अब है कल की ,
फ़िक्र है ,अधूरे हैं सपने
पीछे मुड़ के देखा तो
बहुत दूर थे वो अपने
मंजिल को ढूंढते ढूंढते,
कहां खो गए हैं हम
क्या सच में इतने,
बड़े हो गए हैं हम!

वो भी क्या दिन थे ... मम्मी की गोद और पापा की कंधे ना पैसे की सोच ना और , ना ही लाइफ के फंडे कल की चिंता और ना, ही फ्यूचर के सपने लेकिन अब है कल की , फ़िक्र है ,अधूरे हैं सपने पीछे मुड़ के देखा तो बहुत दूर थे वो अपने मंजिल को ढूंढते ढूंढते, कहां खो गए हैं हम क्या सच में इतने, बड़े हो गए हैं हम!

#वो भी क्या दिन थे

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