Sunil Kumar  Mahto

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जिंदगी की गाड़ी चलती जाय ,बस चलती जाय ना रुके,ना झुके बस चलती जाए, बस चलती जाय हर क्षण ,हर पल बस चलती,बस चलती जाय ना रुके रात, ना रुके दिन ,किसी के बिन क्यों ना , गिन गिन बस चलती जाय,बस चलती जाय ना किसी के, आस में ना किसी के विश्वास में बस चलती जाय

#जिंदगी #कविता  जिंदगी की गाड़ी
चलती जाय ,बस चलती जाय
ना रुके,ना झुके
बस चलती जाए, बस चलती जाय
हर क्षण ,हर पल
बस चलती,बस चलती जाय
ना रुके रात,
ना रुके दिन ,किसी के बिन
क्यों ना , गिन गिन
बस चलती जाय,बस चलती जाय
ना किसी के, आस में
ना किसी के विश्वास में बस चलती जाय

#जिंदगी की गाड़ी

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चले आओ ना थक गई आंखे,दीदार के लिए हो गई अगर है ! तूम फुरसत, तो पूरी कर दो ना मेरी हसरत मान के जान,रखा हूं ! सलामत तुझे आकार कर दो ना तृप्त एक बार मुझे रखा हूं मन को संभाल के हर बार द्वंद्व से निहाल कर दो ना आकर मुझे पूरे मन से !

#कविता #चले  चले आओ ना
थक गई आंखे,दीदार के लिए 
                 हो गई अगर  है ! तूम फुरसत,
तो पूरी कर दो ना मेरी हसरत
                 मान के जान,रखा हूं ! सलामत तुझे
आकार कर दो ना तृप्त एक बार मुझे
               रखा हूं मन को संभाल के  हर बार द्वंद्व से
      निहाल कर दो ना आकर मुझे पूरे मन से !

#चले आओ ना२६

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वो भी क्या दिन थे ... मम्मी की गोद और पापा की कंधे ना पैसे की सोच ना और , ना ही लाइफ के फंडे कल की चिंता और ना, ही फ्यूचर के सपने लेकिन अब है कल की , फ़िक्र है ,अधूरे हैं सपने पीछे मुड़ के देखा तो बहुत दूर थे वो अपने मंजिल को ढूंढते ढूंढते, कहां खो गए हैं हम क्या सच में इतने, बड़े हो गए हैं हम!

#कविता  वो भी क्या दिन थे ...

मम्मी की गोद और पापा की कंधे
ना पैसे की सोच ना और ,
ना ही लाइफ के फंडे
कल की चिंता और ना,
ही फ्यूचर के सपने
लेकिन अब है कल की ,
फ़िक्र है ,अधूरे हैं सपने
पीछे मुड़ के देखा तो
बहुत दूर थे वो अपने
मंजिल को ढूंढते ढूंढते,
कहां खो गए हैं हम
क्या सच में इतने,
बड़े हो गए हैं हम!

#वो भी क्या दिन थे

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" कल का मानव" कल का मानव कैसे हुआ दानव इस बात को उठा लो , करो दो सवाल खड़ा वरना हो जाएगा मुश्किल बड़ा आज जो देख रहे हो इससे कुछ शिख रहे हो आज जो आए है चपेट में कोरोना की लपेट में, मौत का बज रहा तांडव गांडीव धनुष उठाने को क्या आयेंगे पांडव नहीं ये तो सिर्फ आहट है फिर कैसा घबराहट है अभी तो सिर्फ सन्नाटा है छाई अभी विकराल रूप कहा अाई ये तो आग का एक झोंका है प्रकृति ने बहुत कुछ रोका है संभलो और सभालो देश को आपसी में मिटाओ क्लेश को मत बन जाओ दानव मत भूलो हो तुम मानव

#कविता #कल  "  कल का मानव"

              कल का मानव कैसे हुआ दानव
   इस   बात  को  उठा  लो  , 
                 करो दो  सवाल  खड़ा 
वरना हो जाएगा मुश्किल बड़ा
                  आज जो देख रहे हो
 इससे कुछ शिख रहे हो
                  आज जो आए है चपेट में
कोरोना की लपेट में,
                  मौत का बज रहा तांडव
गांडीव धनुष उठाने को
                   क्या आयेंगे पांडव नहीं
ये तो सिर्फ  आहट है
                   फिर कैसा घबराहट है
अभी तो सिर्फ सन्नाटा है छाई
                 अभी विकराल रूप कहा अाई
ये तो  आग का एक झोंका है
                प्रकृति  ने   बहुत कुछ रोका है
 संभलो और सभालो देश को
                  आपसी में मिटाओ क्लेश को
मत बन जाओ दानव 
                   मत भूलो हो तुम मानव

#कल का मानव कैसे बना दानव

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वक्त का पुकार पुकार रहा हैं वक्त ,मांग रहा तुम्हारा रक्त वक्त के पास भी वक्त नहीं है अभी बचा इतिहास एक बार फिर से इतिहास रचा मच रही संसार में जिस प्रकार त्राहिमाम..(१) लग रहा है,होगा पृथ्वी का संपूर्ण खात्मा बार बार बोल रहा मन ,कांप रहा आत्मा जिस प्रकार अस्त, ब्यस्त, त्रस्ट, है जहां हो रहा है, आदमी का मरण जहां तहां..(२) डर रहा है, मजबूरियों के संग जी रहा है शांत है फिर भी अशांत है,क्या यह खेल है सांस चल रही है,फिर भी आस जल रही है जिंदा रह के भी,लास है, लासो का ढेर हो रही है....(३) इसी लिए पुकार रहा है वक्त, मांग रहा है रक्त जहां भी रहो,संभलो और संभालो जीवन हो सके तो ,रक्षण करो जीवन का सदा असहाय को साथ दो निभाओ मर्यादा...(४) जीवन मरण का चक्र जो चल रहा है आज मिट रहे मानव जिस प्रकार देखते ही देखते दिख रहा काल चक्र,नहीं मिल रहा कोई तर्क सुन लो वक्त का पुकार, कम करो रफ्तार...(५)

#कविता #वक्त  वक्त का पुकार
पुकार रहा हैं वक्त ,मांग रहा तुम्हारा रक्त
वक्त के पास भी वक्त नहीं है अभी बचा
इतिहास एक बार फिर से इतिहास रचा
मच रही संसार में जिस प्रकार त्राहिमाम..(१)

लग रहा है,होगा पृथ्वी का संपूर्ण खात्मा
बार बार बोल रहा मन ,कांप रहा आत्मा
जिस प्रकार अस्त, ब्यस्त, त्रस्ट, है  जहां
हो रहा है, आदमी का मरण  जहां तहां..(२)

डर रहा है, मजबूरियों के संग जी रहा है  
शांत है फिर भी अशांत है,क्या यह खेल है
सांस चल रही है,फिर भी आस जल रही है
जिंदा रह के भी,लास है, लासो का ढेर हो
 रही है....(३)

इसी लिए पुकार रहा है वक्त, मांग रहा है रक्त
जहां भी रहो,संभलो और संभालो जीवन
हो सके तो ,रक्षण करो जीवन का सदा
असहाय को साथ दो निभाओ मर्यादा...(४)

जीवन मरण का चक्र जो चल रहा है आज
मिट रहे मानव जिस प्रकार देखते ही देखते
दिख रहा काल चक्र,नहीं मिल रहा कोई तर्क
सुन लो वक्त का पुकार, कम करो रफ्तार...(५)

#वक्त का पुकार

6 Love

#प्रवासी #कविता  प्रवासी मजदूर ✨

#प्रवासी मजदूर

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