अविश्वसनीय रोज - रोज आके आपका वो छत पर दाना डा़लना

"अविश्वसनीय रोज - रोज आके आपका वो छत पर दाना डा़लना याद है । वो सावन की झड़ीयां , वो आपकी परी का झूला झूलना याद है । परिदें हैं हम गगन के ,आज एक बूंद के प्यासे हैं । तपतपाती गर्मी के इन लू के झपेटों में आज मौत के मारे हैं । पानी का सकोरा रख दो आँगन में आपके । बाबू जी दुवा दे परिदें गगन को उड़ जाएंगें । ©Indra jeet"

 अविश्वसनीय रोज - रोज आके आपका वो छत पर दाना डा़लना याद है ।
वो सावन की झड़ीयां , वो आपकी परी का झूला झूलना याद है ।
परिदें हैं हम गगन के ,आज एक बूंद के प्यासे हैं ।
तपतपाती गर्मी के  इन लू के झपेटों में आज मौत के मारे हैं ।
पानी का सकोरा रख दो आँगन में आपके ।
बाबू जी दुवा दे परिदें गगन को उड़ जाएंगें ।

©Indra jeet

अविश्वसनीय रोज - रोज आके आपका वो छत पर दाना डा़लना याद है । वो सावन की झड़ीयां , वो आपकी परी का झूला झूलना याद है । परिदें हैं हम गगन के ,आज एक बूंद के प्यासे हैं । तपतपाती गर्मी के इन लू के झपेटों में आज मौत के मारे हैं । पानी का सकोरा रख दो आँगन में आपके । बाबू जी दुवा दे परिदें गगन को उड़ जाएंगें । ©Indra jeet

#Unbelievable

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