अविश्वसनीय रोज - रोज आके आपका वो छत पर दाना डा़लना याद है ।
वो सावन की झड़ीयां , वो आपकी परी का झूला झूलना याद है ।
परिदें हैं हम गगन के ,आज एक बूंद के प्यासे हैं ।
तपतपाती गर्मी के इन लू के झपेटों में आज मौत के मारे हैं ।
पानी का सकोरा रख दो आँगन में आपके ।
बाबू जी दुवा दे परिदें गगन को उड़ जाएंगें ।
©Indra jeet
#Unbelievable