वेद पढना, समझना, कहना और सुनना सरल है पर वेदना पढना, समझना, कहना और सुनना सभी मुश्किल है और जब आप अपनी वेदना किसी से कह नही सकते तो शुरू होती है स्वयं से वार्ता और यहीं स्वयं से किया संवाद. देता है अनुभव की पिटारी और जब यह अनुभव की पोटली हमारे कठिन समय मे खुलती हैं तो दुनिया के क्षुद्र स्वार्थो पर कभी हसीं आती है तो कभी क्रोध ।
समीक्षा पाठक
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