कभी मज़हब,कभी जाति,कभी रंगभेद करते हैं, अमन से रहन | हिंदी शायरी

"कभी मज़हब,कभी जाति,कभी रंगभेद करते हैं, अमन से रहने वालों में पैदा मतभेद करते हैं, कुर्सी वाले क्या जाने किसी की भूख-प्यास को? ये जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं। कृष्णगोपाल सोलंकी🙏🏼 ©Krishan Gopal Solanki"

 कभी मज़हब,कभी जाति,कभी रंगभेद करते हैं,
अमन से रहने वालों में पैदा मतभेद करते हैं,
कुर्सी वाले क्या जाने किसी की भूख-प्यास को?
ये जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं।

 कृष्णगोपाल सोलंकी🙏🏼

©Krishan Gopal Solanki

कभी मज़हब,कभी जाति,कभी रंगभेद करते हैं, अमन से रहने वालों में पैदा मतभेद करते हैं, कुर्सी वाले क्या जाने किसी की भूख-प्यास को? ये जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं। कृष्णगोपाल सोलंकी🙏🏼 ©Krishan Gopal Solanki

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