शाम शरमाई है इस कदर,
जैसे हो कोई,नई -नवेली दुल्हन
ओढ़ रखी है चादर,सिर से पांव तक, सिंदूरी लालिमा की
मन रूपी किरनों में,मची है इक अजीब सी उलझन
ये शाम, अंशुमान की डोली में बैठ, यूं ढलती जा रही है
जैसे विह्वल हो देखने को , विधु का आगमन
जैसे विह्वल हो देखने को , विधु का आगमन।
©virutha sahaj
#मंजर इक शाम का