जब कभी इच्छा जाग्रत हो किसी
मनमोहक सी उपन्यास पड़ने का
ओर वो तुम्हे मिल ना पाए।
तो याद के लेना अपनी पहली
किताब को जो तुमने अपनी गली
की सामने वाली दुकान से खरीदी
थी और वो दुकानदार को जिसका
बेटा तुम्हारी ही हमउम्र का है और
तुमसे भी ज़्यादा पड़ने में अव्वल है
पर वो पांचवीं के बाद पड़ नहीं पाया
क्योंकी हमारे शहर में पांचवीं तक का
ही शुल्क माफ है।
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