प्रेम संबंधों में सावन भादों की घनी हरियाली अब पू | हिंदी कविता

"प्रेम संबंधों में सावन भादों की घनी हरियाली अब पूस माघ तक आते आते अकड़ने लगती ज्येष्ठ आषाढ़ तक पहुंचते क्रोध में झुलसने लगती फिर सावन के आने तक बूंदों में बिखरकर मिटने लगती बड़ी ही छोटी उम रह गई आपसी सम्मानित स्वाभिमान की बबली गुर्जर ©Babli Gurjar"

 प्रेम संबंधों में सावन भादों की  घनी हरियाली
अब पूस माघ तक आते आते अकड़ने लगती
ज्येष्ठ आषाढ़ तक पहुंचते क्रोध में झुलसने लगती
फिर सावन के आने तक बूंदों में बिखरकर मिटने लगती
बड़ी ही छोटी उम रह गई आपसी सम्मानित स्वाभिमान की
बबली गुर्जर

©Babli Gurjar

प्रेम संबंधों में सावन भादों की घनी हरियाली अब पूस माघ तक आते आते अकड़ने लगती ज्येष्ठ आषाढ़ तक पहुंचते क्रोध में झुलसने लगती फिर सावन के आने तक बूंदों में बिखरकर मिटने लगती बड़ी ही छोटी उम रह गई आपसी सम्मानित स्वाभिमान की बबली गुर्जर ©Babli Gurjar

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