ख़्वाब देखना भी हर किसी को नसीब नहीं होता... दो व | हिंदी Shayari
"ख़्वाब देखना भी हर किसी को नसीब नहीं होता...
दो वक़्त की रोटी की खातिर जो तुमने दिन भर बोझा ढोया होता..
रातें कम लगती हैं जब पूरी नहीं होती नींद उनकी..
लेकिन फिर उस पेट को आग को बुझाने का कोई हल भी तो ना था..।"
ख़्वाब देखना भी हर किसी को नसीब नहीं होता...
दो वक़्त की रोटी की खातिर जो तुमने दिन भर बोझा ढोया होता..
रातें कम लगती हैं जब पूरी नहीं होती नींद उनकी..
लेकिन फिर उस पेट को आग को बुझाने का कोई हल भी तो ना था..।