माना इश्क न चाहने कि आदत है।
हम क्या करे जो हमे दूसरे की आदत है।
वो न चाहकर भी हमसे मिलने आया।
उसकी रोज नयी चाल चलने की जो आदत है।
अपने चहरे पर वो डाल के आये परदा।
हमें उनकी आँख के पास का तिल देखने की आदत है।
तू खुद अपना शीशा-गरी का हुनर न कर जाया।
हमारी क्या है, हमे तो टूट जाने की आदत है।
sam_❤
©silent_night
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