उस अनजान रास्ते पर अकेले ही चल पड़ी, निःसंकोच, नि | हिंदी कविता

"उस अनजान रास्ते पर अकेले ही चल पड़ी, निःसंकोच, निडर हो कदम आगे बढ़ाती गयी। पीछे जो झूट गए, पुकारा मुझे, रोकने की चाह रही, रुकी नहीं मैं उनके लिए, यह मेरी मजबूरी तो नहीं, गति उन्हें बढ़ाने कह, मैं अपनी मंजिल पर बढ़ती रही। कुछ साथ छुटे, कुछ नए जुड़े, मेरा सफ़र चलता रहा, याद आये सभी, पर मोह में निर्णय कभी न बदला आराधना अग्रवाल ©Aaradhana Agarwal"

 उस अनजान रास्ते पर अकेले ही चल पड़ी, 
निःसंकोच, निडर हो कदम आगे बढ़ाती गयी।
पीछे जो झूट गए, पुकारा मुझे, रोकने की चाह रही, 
रुकी नहीं मैं उनके लिए, यह मेरी मजबूरी तो नहीं, 
गति उन्हें बढ़ाने कह, मैं अपनी मंजिल पर बढ़ती रही। 
कुछ साथ छुटे, कुछ नए जुड़े, मेरा सफ़र चलता रहा, 
 याद आये सभी, पर मोह में निर्णय कभी न बदला 
आराधना अग्रवाल

©Aaradhana Agarwal

उस अनजान रास्ते पर अकेले ही चल पड़ी, निःसंकोच, निडर हो कदम आगे बढ़ाती गयी। पीछे जो झूट गए, पुकारा मुझे, रोकने की चाह रही, रुकी नहीं मैं उनके लिए, यह मेरी मजबूरी तो नहीं, गति उन्हें बढ़ाने कह, मैं अपनी मंजिल पर बढ़ती रही। कुछ साथ छुटे, कुछ नए जुड़े, मेरा सफ़र चलता रहा, याद आये सभी, पर मोह में निर्णय कभी न बदला आराधना अग्रवाल ©Aaradhana Agarwal

#thepoeticmeee

#Journey

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