उम्मीद से ज्यादा उम्मीद की थी , जिंदगी से मैने,
पर नसीब से ज्यादा और वक्त से पहले किसे मिला है,
ख़ाक में मिल गए , जो ख्वाब जागती आंखों से देखे,
फिर भी मेरी बेकस सी जिंदगी से मुझे नही कोई गिला है,
हर अरमान बिक गया मेरा , अरमानों के बाज़ार को,
ईमान के संग जीने का , शायद यही एक सिला है,
बदलता हर लम्हा दे रहा है , गवाही मेरे संघर्षों की,
मगर बदलाव ये मुझे , मेरी जिंदगी में कहां मिला है,
ख्वाब टूटे उम्मीद टूटी , और टूट गए अरमान सभी,
मैं हूं और तन्हाई है, और दूर तक दर्द का सिलसिला है।।
- पूनम आत्रेय
©poonam atrey
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