White हिन्दी से ही सीखा है हमने, ककहरा जीवन का,
हर रोम रोम में निहित है, स्वाद वर्ण और व्यंजन का,
हर वाणी को सजाया है ,हिन्दी के कोमल भावों ने,
सींचा है अक्षर अक्षर को, साहित्यिक संवेदनाओं ने,
हिन्दी भाषा तो जननी है , वेद और पुराणों की,
हिन्दी ही ओजस्वी वाणी है ,पर्वत और पाषाणों की,
हिन्दी ने हमको सिखलाया ,पाठ एकता में बल का,
हिन्दी ने हममें प्राण भरे ,ये साहस बनी है निर्बल का,
रामायण ,गीता ,महाभारत से, ग्रन्थों का सार बनी,
वेद पुराणों को रचकर ,नवजीवन का आधार बनी,
कितने शब्द ,व्यंजन ,अलंकार ,इसके माथे सजते हैं,
आज भी भारत माता के , बस प्राण इसी में बसते हैं,।।
-पूनम आत्रेय
©poonam atrey
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