एक ग़ज़ल! तमाशे जमाने के हमने भी यहां भरपूर देखे, | हिंदी कविता

"एक ग़ज़ल! तमाशे जमाने के हमने भी यहां भरपूर देखे, रुतबेदार भी यहां कई हमने मजबूर देखे।। कुछ शाख से टूटकर भी नहीं होते हैं जुदा, लोग होकर पास भी हमने अक्सर दूर देखे।। लहज़े जिनके रहते कभी नरम सादगी से, बदलते कितने किरदार हमने वो क्रूर देखे।। पेशानी पर जिनके कभी नाम नहीं हुए, तवारीख के पन्नों पर हमने वो जरूर देखे।। फतेह नहीं होती कभी भी होश में आकर, दुनियां जीतने वाले खुद के नशे में चूर देखे।। ~ प्रेम शंकर "नूरपुरिया" मौलिक स्वरचित ©prem shanker noorpuriya"

 एक ग़ज़ल!

तमाशे जमाने के हमने भी यहां भरपूर देखे,
रुतबेदार भी यहां कई हमने मजबूर देखे।।

कुछ शाख से टूटकर भी नहीं होते हैं जुदा,
लोग होकर पास भी हमने अक्सर दूर देखे।।

लहज़े जिनके रहते कभी नरम सादगी से,
बदलते कितने किरदार हमने वो क्रूर देखे।।

पेशानी पर जिनके कभी नाम नहीं हुए,
तवारीख के पन्नों पर हमने वो जरूर देखे।।

फतेह नहीं होती कभी भी होश में आकर,
दुनियां जीतने वाले खुद के नशे में चूर देखे।।
~ प्रेम शंकर "नूरपुरिया"
मौलिक स्वरचित

©prem shanker noorpuriya

एक ग़ज़ल! तमाशे जमाने के हमने भी यहां भरपूर देखे, रुतबेदार भी यहां कई हमने मजबूर देखे।। कुछ शाख से टूटकर भी नहीं होते हैं जुदा, लोग होकर पास भी हमने अक्सर दूर देखे।। लहज़े जिनके रहते कभी नरम सादगी से, बदलते कितने किरदार हमने वो क्रूर देखे।। पेशानी पर जिनके कभी नाम नहीं हुए, तवारीख के पन्नों पर हमने वो जरूर देखे।। फतेह नहीं होती कभी भी होश में आकर, दुनियां जीतने वाले खुद के नशे में चूर देखे।। ~ प्रेम शंकर "नूरपुरिया" मौलिक स्वरचित ©prem shanker noorpuriya

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