साँप के आलिंगनों में
मौन चंदन तन पड़े हैं
सेज के सपनों भरे कुछ
फूल मुर्दों पर चढ़े हैं
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स्वप्न के शव पर खड़े हो
माँग भरती हैं प्रथाएँ
कंगनों से तोड़ हीरा
खा रहीं कितनी व्यथाएँ
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जो समर्पण ही नहीं हैं
वे समर्पण भी हुए हैं
देह सब जूठी पड़ी है
प्राण फिर भी अनछुए हैं
- भारत भूषण
©deepak sharma
कल के पर्व की स्टेटस और स्टोरीज देखकर भारत भूषण जी कविता के कुछ अंश 😄🤪