आख़री कुछ लम्हें बिताने दे तेरी क़ुर्बत में ,
के अब लोग दफ़न कर देंगे मुझे तुर्बत में।
नही मंजूर क़िस्मत को ये साथ तेरा-मेरा ,
अब हमे भी ये दिन काटने होंगे फ़ुर्क़त में।
इक गुलदस्ता ले आना कभी मेरी क़ब्र पर ,
के दिलभर निहारता रहू मैं तुम्हे फ़ुर्सत में।
मैने इश्क़ के गलियारों में सौ ख़्वाब है बुने ,
तुझसे ही सीखा मैंने इश्क़ तेरी सोहबत में।
जा रहा था हमेशा के लिए छोड़ कर मुझे ,
मुड़ कर पीछे भी ना देख पाया ज़हमत में।
मिलना और बिछड़ना तो तय ही था हमारा ,
के बस तेरा साथ नही लिखा मेरी क़िस्मत में।
किसी मोड़ पर मिलेंगे जरूर अब हम-दोनों ,
के अब 'आरू' गुजारेगी ज़ीस्त इसी हसरत में।
©आराधना
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