आख़री कुछ लम्हें बिताने दे तेरी क़ुर्बत में , के अब | हिंदी Shayari

"आख़री कुछ लम्हें बिताने दे तेरी क़ुर्बत में , के अब लोग दफ़न कर देंगे मुझे तुर्बत में। नही मंजूर क़िस्मत को ये साथ तेरा-मेरा , अब हमे भी ये दिन काटने होंगे फ़ुर्क़त में। इक गुलदस्ता ले आना कभी मेरी क़ब्र पर , के दिलभर निहारता रहू मैं तुम्हे फ़ुर्सत में। मैने इश्क़ के गलियारों में सौ ख़्वाब है बुने , तुझसे ही सीखा मैंने इश्क़ तेरी सोहबत में। जा रहा था हमेशा के लिए छोड़ कर मुझे , मुड़ कर पीछे भी ना देख पाया ज़हमत में। मिलना और बिछड़ना तो तय ही था हमारा , के बस तेरा साथ नही लिखा मेरी क़िस्मत में। किसी मोड़ पर मिलेंगे जरूर अब हम-दोनों , के अब 'आरू' गुजारेगी ज़ीस्त इसी हसरत में। ©आराधना"

 आख़री कुछ लम्हें बिताने दे तेरी क़ुर्बत में ,
के अब लोग दफ़न कर देंगे मुझे तुर्बत में।

नही मंजूर क़िस्मत को ये साथ तेरा-मेरा ,
अब हमे भी ये दिन काटने होंगे फ़ुर्क़त में।

इक गुलदस्ता ले आना कभी मेरी क़ब्र पर ,
के दिलभर निहारता रहू मैं तुम्हे फ़ुर्सत में।

मैने इश्क़ के गलियारों में सौ ख़्वाब है बुने ,
तुझसे ही सीखा मैंने इश्क़ तेरी सोहबत में।

जा रहा था हमेशा के लिए छोड़ कर  मुझे ,
मुड़ कर पीछे भी ना देख पाया ज़हमत में।

मिलना और बिछड़ना तो तय ही था हमारा , 
के बस तेरा साथ नही लिखा मेरी क़िस्मत में।

किसी मोड़ पर मिलेंगे जरूर अब हम-दोनों ,
के अब 'आरू' गुजारेगी ज़ीस्त इसी हसरत में।
©आराधना

आख़री कुछ लम्हें बिताने दे तेरी क़ुर्बत में , के अब लोग दफ़न कर देंगे मुझे तुर्बत में। नही मंजूर क़िस्मत को ये साथ तेरा-मेरा , अब हमे भी ये दिन काटने होंगे फ़ुर्क़त में। इक गुलदस्ता ले आना कभी मेरी क़ब्र पर , के दिलभर निहारता रहू मैं तुम्हे फ़ुर्सत में। मैने इश्क़ के गलियारों में सौ ख़्वाब है बुने , तुझसे ही सीखा मैंने इश्क़ तेरी सोहबत में। जा रहा था हमेशा के लिए छोड़ कर मुझे , मुड़ कर पीछे भी ना देख पाया ज़हमत में। मिलना और बिछड़ना तो तय ही था हमारा , के बस तेरा साथ नही लिखा मेरी क़िस्मत में। किसी मोड़ पर मिलेंगे जरूर अब हम-दोनों , के अब 'आरू' गुजारेगी ज़ीस्त इसी हसरत में। ©आराधना

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