तुम बैठना अकेले और सोचना
जीवन हमेशा एकाकी होता है|
सब साथ तो हैं तुम्हारे
फिर भी एकांत प्रबल है|
शायद जीवन का सुख ही एकांत है
फिर भी कुछ अधूरा लगता है
जीवन में अकेले चलना बड़ी बात नहीं है
बड़ा है एकांत में आनंद
क्या ईश्वर ही एकांत हर सकता है?
तो संसार क्यों है?
तो नर- नारी क्यों है?
मित्रता- शत्रुता क्यों है?
अंततः एकांत शांति!
उत्तर गुंफित है|
और तुम्हें अकेले ही सोचना है|
कि एकांत क्या है??
©मनीष भट्ट
#lunar