बोलता हूँ तो कहते हैं बोलता है,
चुप रहूँ तो कहें कुछ बोलता नही,
दूसरों में बुराई आंकने वाला अक्सर,
ख़ुद की गहराई टटोलता नहीं।
अच्छाई से अच्छा होना अब अच्छी बात नहीं,
मान नहीं मिलता ग़र धन का साथ नही,
गुज़रे वो ज़माने जब दिल खुले होते थे,
आज के दौर में कोई दरवाज़ा खोलता नहीं।
रिश्ते सब सारे दुकान हो गए,
मोहब्बत से बने घर मक़ान हो गए,
नहीं बैठती तितलियाँ मुरझाए फुलों पर,
माली बिना भवरे परेशान हो गए।
परवाने फ़ना हुए और होते ही रहे,
शमा का दिल है कि कभी डोलता नही।
रविकुमार पंचवाल
बोलता हूँ तो कहते हैं बोलता है,
चुप रहूँ तो कहें कुछ बोलता नही,
दूसरों में बुराई आंकने वाला अक्सर,
ख़ुद की गहराई टटोलता नहीं।
अच्छाई से अच्छा होना अब अच्छी बात नहीं,
मान नहीं मिलता ग़र धन का साथ नही,
गुज़रे वो ज़माने जब दिल खुले होते थे,
आज के दौर में कोई दरवाज़ा खोलता नहीं।