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नही मिलता अब सुकूं दुनिया और दुनियादारी में, पल पल जैसे जलता है मन की बेकरारी में, मैं क्या हूँ, क्यों हूँ ? समझ नहीं आता, बस भटकता फिरता हूँ ज़माने की बदहाली में. ऐ ख़ुदा अब तू राह दिखा बेगुनाह बैठा हूँ तेरी कोतवाली में... रविकुमार ©Ravi Kumar Panchwal
Ravi Kumar Panchwal
12 Love
जो दर्द सुकून देता था, वो दर्द भी गुज़र गया, जिसके भरोसे हम ज़िंदा थे, वो कमबख़्त आज मर गया। रविकुमार ©Ravi Kumar Panchwal
10 Love
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ज़ख़्म ताज़े थे, तो दर्द भी मीठा था, ज़ख़्म जो निशां बने, तो दर्द निशां खो बैठा। भूक जब मासूम थी, तो हम सोने की चिड़िया थे, भूक जो गुमराह हुई, मैं नफ़रत के बीज बो बैठा। रविकुमार ©Ravi Kumar Panchwal
13 Love
कमियाँ क्या भांपता है, ख़ूबियों पे ग़ौर कर, अदना है ग़म ये तेरा, ख़ुशियों का शोर कर। कह तो दिया ख़ुदा ने, मेहमां है तू जहाँ में, सदियां क्या नापता है, हर पल को दौर कर। रविकुमार ©Ravi Kumar Panchwal
8 Love
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