वो भी किसी कि बेटी तो किसी की बहन थी, वो भी अपने प | हिंदी कविता

"वो भी किसी कि बेटी तो किसी की बहन थी, वो भी अपने पिता का अभिमान और अपने भाई की जान थी। निकली थी वो रात के वक्त किसी काम के लिए बाहर, पर वो इस बात से अनजान थी। बैठे है कोई अपनी हवस को मिटाने उसके जिस्म के साथ खेलकर, उसके जिस्म के साथ खेलकर भी उनकी हवस ना मिटी, फिर साबिध की उनकी मर्दानगी उस मासूम को जलाकर। रो रहा हैं उसका परिवार अब उसको इंसाफ दिलाने के लिए, पर कानून भी दे रहा है उसके मा बाप को सजा अदालत में बार बार बुलाकर।"

 वो भी किसी कि बेटी तो किसी की बहन थी,
वो भी अपने पिता का अभिमान और अपने भाई की जान थी।

निकली थी वो रात के वक्त किसी काम के लिए बाहर,
पर वो इस बात से अनजान थी।

बैठे है कोई अपनी हवस को मिटाने उसके जिस्म के साथ खेलकर,
उसके जिस्म के साथ खेलकर भी उनकी हवस ना मिटी,
फिर साबिध की उनकी मर्दानगी उस मासूम को जलाकर।

रो रहा हैं उसका परिवार अब उसको इंसाफ दिलाने के लिए, 
पर कानून भी दे रहा है उसके मा बाप को सजा अदालत में बार बार बुलाकर।

वो भी किसी कि बेटी तो किसी की बहन थी, वो भी अपने पिता का अभिमान और अपने भाई की जान थी। निकली थी वो रात के वक्त किसी काम के लिए बाहर, पर वो इस बात से अनजान थी। बैठे है कोई अपनी हवस को मिटाने उसके जिस्म के साथ खेलकर, उसके जिस्म के साथ खेलकर भी उनकी हवस ना मिटी, फिर साबिध की उनकी मर्दानगी उस मासूम को जलाकर। रो रहा हैं उसका परिवार अब उसको इंसाफ दिलाने के लिए, पर कानून भी दे रहा है उसके मा बाप को सजा अदालत में बार बार बुलाकर।

#Confusion क्या कसूर था उस मासूम का?

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