माहे रमज़ान हे चला...
वो रोजे का सवाब, वो गुनाहों से निजात,
देखो देखो रोजेदारों, माहे रमज़ान हे चला।
थी रॉनके चहेरो पर, मायूसी आखिर क्यों है ?
देखो देखो गुनहगारों, माहे रमज़ान हे चला।
वो तराविह की नमाज, वो सजदोकी कतार,
देखो देखो गुनहगारों, माहे रमज़ान हे चला।
वो सहेरीकी घड़ी, वो इफातरी का सुकून,
देखो देखो रोजेदारों, माहे रमज़ान हे चला।
वो शबे कद्रका पाना,वो सब्रका है मिला इनाम,
देखो देखो मुसलमानों, माहे रमज़ान हे चला।
~ गाहा वसीम आई.
©Vasim Gaha
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