#OpenPoetry ये जो बादल बहते हैं बड़ी रफ्तार से इन फ
"#OpenPoetry ये जो बादल बहते हैं बड़ी रफ्तार से इन फिज़ाओं के साथ
क्या कभी थमती हवाओं में इन्होंने अपने वजूद को देखा है ?
और ढक तो लेता है ये चाँद और सूरज को बड़ी खोमशी से अपने आगोश में
मगर क्या कभी भरी दोपहरी को उसने रात होते देखा है ?"
#OpenPoetry ये जो बादल बहते हैं बड़ी रफ्तार से इन फिज़ाओं के साथ
क्या कभी थमती हवाओं में इन्होंने अपने वजूद को देखा है ?
और ढक तो लेता है ये चाँद और सूरज को बड़ी खोमशी से अपने आगोश में
मगर क्या कभी भरी दोपहरी को उसने रात होते देखा है ?