White काश कि कभी ऐसा हो पाता
मैं खुलकर उसके सामने रो पाता
दर्द अपना मैं उसको सुना पाता
सीने में लगी तस्वीर उसकी उसे दिखा पाता
हाल दिल का अपने उसे बता पाता, उसको गले से लगा पाता, प्यार में उसके मैं खो जाता, ग़म सारे अपने भुला पाता, कुछ ग़ज़लें भी उसको सुना पाता, काश कि कभी ऐसा भी हो पाता!
देखकर वो मुझे मुस्कुरा देती, दर्द की मेरे मुझको दवा देती, अपनी बाहों में मुझको समा लेती, सर को प्यार से मेरे सहला देती, दिल अपना भी खोल कर दिखा देती, जख्म पे मेरे मरहम लगा देती, एक कप चाय वो मुझको पिला देती, काश के ये भी कभी हो पाता, उसको सामने मैं खुलकर रो पाता!
कवि: इंद्रेश द्विवेदी (पंकज)
©Indresh Dwivedi
#एक_ख्वाब