अंतरजाल के जाल मे‌ं संसार फ‌ंस रहा है,। या कुछ युं | हिंदी क

"अंतरजाल के जाल मे‌ं संसार फ‌ंस रहा है,। या कुछ युं कहें! इन मृग तृशणा में फस कर, खुद को बरबाद कर रहा हैं। अपनी निश छल मन को, और अपनी निर्दोश सादगी को इस झुठे छलावा पर वार रहा हैं । ये कैसा शौख है जमाने का, खुशी को ढुंढते नहीं चदं लम्हों में , झुठे नकाब के पीछे अपनी भावनाओं को रखने का आदी हो रहा है । खुशगवार रहने का शौखीन नहीं , या युं कहें ! वे इस वेब दुनियां में खुद से ही खुद को झल रहा हैं । क्या तक्लीफ है इस जमाने को, जीसका हल ढुंढते-ढुंढते ये मानव खुद को खो रहा हैं ।। ©khushboo €{khushi}€ tiwari"

 अंतरजाल के जाल मे‌ं संसार फ‌ंस रहा है,।
या कुछ युं कहें!
इन मृग तृशणा में फस कर, खुद को बरबाद कर रहा हैं।
अपनी निश छल मन को, और अपनी निर्दोश सादगी को इस झुठे छलावा पर वार रहा हैं ।
ये कैसा शौख है जमाने का,
खुशी को ढुंढते नहीं चदं लम्हों में ,
झुठे नकाब के पीछे अपनी भावनाओं को रखने का आदी हो रहा है ।
खुशगवार रहने का शौखीन नहीं ,
या युं कहें ! 
वे इस वेब दुनियां में खुद से ही खुद को झल रहा हैं ।
क्या तक्लीफ है इस जमाने को,
जीसका  हल ढुंढते-ढुंढते ये मानव खुद को खो रहा हैं ।।

©khushboo €{khushi}€ tiwari

अंतरजाल के जाल मे‌ं संसार फ‌ंस रहा है,। या कुछ युं कहें! इन मृग तृशणा में फस कर, खुद को बरबाद कर रहा हैं। अपनी निश छल मन को, और अपनी निर्दोश सादगी को इस झुठे छलावा पर वार रहा हैं । ये कैसा शौख है जमाने का, खुशी को ढुंढते नहीं चदं लम्हों में , झुठे नकाब के पीछे अपनी भावनाओं को रखने का आदी हो रहा है । खुशगवार रहने का शौखीन नहीं , या युं कहें ! वे इस वेब दुनियां में खुद से ही खुद को झल रहा हैं । क्या तक्लीफ है इस जमाने को, जीसका हल ढुंढते-ढुंढते ये मानव खुद को खो रहा हैं ।। ©khushboo €{khushi}€ tiwari

झुठी तश्वीरों की झुठी दुनियां

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