अंतरजाल के जाल में संसार फंस रहा है,।
या कुछ युं कहें!
इन मृग तृशणा में फस कर, खुद को बरबाद कर रहा हैं।
अपनी निश छल मन को, और अपनी निर्दोश सादगी को इस झुठे छलावा पर वार रहा हैं ।
ये कैसा शौख है जमाने का,
खुशी को ढुंढते नहीं चदं लम्हों में ,
झुठे नकाब के पीछे अपनी भावनाओं को रखने का आदी हो रहा है ।
खुशगवार रहने का शौखीन नहीं ,
या युं कहें !
वे इस वेब दुनियां में खुद से ही खुद को झल रहा हैं ।
क्या तक्लीफ है इस जमाने को,
जीसका हल ढुंढते-ढुंढते ये मानव खुद को खो रहा हैं ।।
©khushboo €{khushi}€ tiwari
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