जीवन भर की कमाई को, कितनी आसानी से लूटा दिए! फिर म | हिंदी कविता

"जीवन भर की कमाई को, कितनी आसानी से लूटा दिए! फिर मेरे दर पे आकर, भिखारी सा हाथ फैला दिए! इंसान हो कर इंसान का, कभी काम नहीं आते हो! दुनिया को दिखाने के लिए, भंडारा और भोग चढ़ाते हो! मै बहरा नहीं हूं जो, घंटा और माइक लगाते हो! अपनी अंधभक्ति में, अपनों को दर्द पहुंचाते हो! एक तरफ कहते हो, कड़ कड़ में भगवान है, फिर उसी भगवान पे, लाठियां बरसाते हो! बंद करो अंधभक्ति का व्यपार, सबको अपना समझो दो सबको प्यार, मै भगवान हूं मै सब जानता हूं, तुम्हारे रग रग को पहचानता हूं!! ©Raj Mani Chaurasia"

 जीवन भर की कमाई को,
कितनी आसानी से लूटा दिए!
फिर मेरे दर पे आकर,
भिखारी सा हाथ फैला दिए!
इंसान हो कर इंसान का,
कभी काम नहीं आते हो!
दुनिया को दिखाने के लिए,
भंडारा और भोग चढ़ाते हो!
मै बहरा नहीं हूं जो, 
घंटा और माइक लगाते हो!
अपनी अंधभक्ति में,
अपनों को दर्द पहुंचाते हो!
एक तरफ कहते हो,
कड़ कड़ में भगवान है,
फिर उसी भगवान पे,
लाठियां बरसाते हो!
बंद करो अंधभक्ति का व्यपार,
सबको अपना समझो दो सबको प्यार,
मै भगवान हूं मै सब जानता हूं,
तुम्हारे रग रग को पहचानता हूं!!

©Raj Mani Chaurasia

जीवन भर की कमाई को, कितनी आसानी से लूटा दिए! फिर मेरे दर पे आकर, भिखारी सा हाथ फैला दिए! इंसान हो कर इंसान का, कभी काम नहीं आते हो! दुनिया को दिखाने के लिए, भंडारा और भोग चढ़ाते हो! मै बहरा नहीं हूं जो, घंटा और माइक लगाते हो! अपनी अंधभक्ति में, अपनों को दर्द पहुंचाते हो! एक तरफ कहते हो, कड़ कड़ में भगवान है, फिर उसी भगवान पे, लाठियां बरसाते हो! बंद करो अंधभक्ति का व्यपार, सबको अपना समझो दो सबको प्यार, मै भगवान हूं मै सब जानता हूं, तुम्हारे रग रग को पहचानता हूं!! ©Raj Mani Chaurasia

बंद करो अंधभक्ति का व्यपार

#अंधभक्ति

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