भरी महफ़िल में
मुझको रुसवा किया
नज़रों के सामने
मुझको धोखा दिया
कितनी मखरुश थी
यार के प्यार मे
तब तुमने जमाने की
ना परवाह की
अफसोस जिन्दगी
क्यो मौका दिया
सब कुछ भुलकर
क्या साबित किया
सब कुछ करके
कहते हो
कुछ ना
घिन आती हैं
आज अपनी तकदीर पे
फल मै पाप का
उसके हो गया