हसरतें अधूरी तो ख़्वाब भी भरपूर निकले,
सरे गम मुस्कराना,कितने मजबूर निकले।
अब फासलों पर भी भरोसा करें तो कैसे,
जो पास थे दिलके वह बहुत दूर निकले।
अब यकीं पर भी यकीं होता नहीं ,उनके,
फैसले कत्ले दिल के मेरे सब मंज़ूर निकले।
वह क़ातिल हैं, ज़माने को ख़बर थी,,मगर,
पर हमीं पाक-ए-नज़र दिले दस्तूर निकले।