वो अरसो लगे ज़िंदगी के करीब आने में जमाना अब दुर र | हिंदी शायरी

"वो अरसो लगे ज़िंदगी के करीब आने में जमाना अब दुर रहने को ज़िंदगी बता रहा हैं वो दुर - दुर से करीब एक दूसरे से पंछियों को ये नया रिवाज सता रहा हैं आशिक़ भी अब भीड़ का हिस्सा हैं लबो को चूमना किस्सा पुराना बता रहा हैं मैं गया उस गली दीदार को वो चाँद थोड़ा और शर्मा रहा हैं वो गले नहीं मिलते, हाथ जोड़ रहे है कातिल, जीने का कानून बता रहा हैं"

 वो अरसो लगे ज़िंदगी के करीब आने में
जमाना अब दुर रहने को ज़िंदगी बता रहा हैं 

वो दुर - दुर से करीब एक दूसरे से
पंछियों को ये नया रिवाज सता रहा हैं 

आशिक़ भी अब भीड़ का हिस्सा हैं
लबो को चूमना किस्सा पुराना बता रहा हैं

मैं गया उस गली दीदार को
वो चाँद थोड़ा और शर्मा  रहा हैं

वो गले नहीं मिलते, हाथ जोड़ रहे है
कातिल, जीने का कानून बता रहा हैं

वो अरसो लगे ज़िंदगी के करीब आने में जमाना अब दुर रहने को ज़िंदगी बता रहा हैं वो दुर - दुर से करीब एक दूसरे से पंछियों को ये नया रिवाज सता रहा हैं आशिक़ भी अब भीड़ का हिस्सा हैं लबो को चूमना किस्सा पुराना बता रहा हैं मैं गया उस गली दीदार को वो चाँद थोड़ा और शर्मा रहा हैं वो गले नहीं मिलते, हाथ जोड़ रहे है कातिल, जीने का कानून बता रहा हैं

गजल

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