ये अमल हम में है बे-इल्म परिंदों में नहीं हम जो | हिंदी Shayari

"ये अमल हम में है बे-इल्म परिंदों में नहीं हम जो इंसानों की तहज़ीब लिए फिरते हैं हम सा वहशी कोई जंगल के दरिंदों में नहीं इक बुझी रूह लुटे जिस्म के ढाँचे में लिए सोचती हूँ मैं कहाँ जा के मुक़द्दर फोड़ूँ मैं न ज़िंदा हूँ कि मरने का सहारा ढूँडूँ और न मुर्दा हूँ कि जीने के ग़मों से छूटूँ कौन बतलाएगा मुझ को किसे जा कर पूछूँ ज़िंदगी क़हर के साँचों में ढलेगी कब तक कब तलक आँख न खोलेगा ज़माने का ज़मीर ज़ुल्म और जब्र की ये रीत चलेगी कब तक ©Mohd Arsh malik"

 ये अमल हम में है बे-इल्म परिंदों में नहीं 

हम जो इंसानों की तहज़ीब लिए फिरते हैं 

हम सा वहशी कोई जंगल के दरिंदों में नहीं 

इक बुझी रूह लुटे जिस्म के ढाँचे में लिए 

सोचती हूँ मैं कहाँ जा के मुक़द्दर फोड़ूँ 

मैं न ज़िंदा हूँ कि मरने का सहारा ढूँडूँ 

और न मुर्दा हूँ कि जीने के ग़मों से छूटूँ 

कौन बतलाएगा मुझ को किसे जा कर पूछूँ 

ज़िंदगी क़हर के साँचों में ढलेगी कब तक 

कब तलक आँख न खोलेगा ज़माने का ज़मीर 

ज़ुल्म और जब्र की ये रीत चलेगी कब तक

©Mohd Arsh malik

ये अमल हम में है बे-इल्म परिंदों में नहीं हम जो इंसानों की तहज़ीब लिए फिरते हैं हम सा वहशी कोई जंगल के दरिंदों में नहीं इक बुझी रूह लुटे जिस्म के ढाँचे में लिए सोचती हूँ मैं कहाँ जा के मुक़द्दर फोड़ूँ मैं न ज़िंदा हूँ कि मरने का सहारा ढूँडूँ और न मुर्दा हूँ कि जीने के ग़मों से छूटूँ कौन बतलाएगा मुझ को किसे जा कर पूछूँ ज़िंदगी क़हर के साँचों में ढलेगी कब तक कब तलक आँख न खोलेगा ज़माने का ज़मीर ज़ुल्म और जब्र की ये रीत चलेगी कब तक ©Mohd Arsh malik

poet sahir ludhyanwi
#womenday

People who shared love close

More like this

Trending Topic