जीने की तैय्यारी में,
कटती उम्र उधारी में,
लेन-देन कारोबारी,
गिनती हो संसारी में,
बँटे हुए कुनबे अपने,
पाण्डे,मिश्र,तिवारी में,
हाथी,घोड़ा,ऊँट नहीं,
पैदल पाँव सवारी में,
मजदूरी की है ताकत,
उड़िया,बंग,बिहारी में,
जोते बिना बुआई हो,
ऊरद, मूँग,खेसारी में,
है मिसाल दोस्ती की,
कृष्ण सुदामा यारी में,
सुने पुकार द्रौपदी की,
कृष्ण समाए साड़ी में,
भव बाधा काटे गुंजन,
रखो आस बनवारी में,
--शशि भूषण मिश्र
'गुंजन' प्रयागराज
©Shashi Bhushan Mishra
#जीने की तैय्यारी में#