नही मिलता अब सुकूं  दुनिया और दुनियादारी में, पल | हिंदी कविता

"नही मिलता अब सुकूं  दुनिया और दुनियादारी में, पल पल जैसे जलता है मन की बेकरारी में, मैं क्या हूँ, क्यों हूँ ? समझ नहीं आता, बस भटकता फिरता हूँ ज़माने की बदहाली में. ऐ ख़ुदा अब तू राह दिखा  बेगुनाह बैठा हूँ तेरी कोतवाली में... रविकुमार ©Ravi Kumar Panchwal"

 नही मिलता अब सुकूं 

दुनिया और दुनियादारी में,

पल पल जैसे जलता है

मन की बेकरारी में,

मैं क्या हूँ, क्यों हूँ ? समझ नहीं आता,

बस भटकता फिरता हूँ ज़माने की बदहाली में.

ऐ ख़ुदा अब तू राह दिखा 

बेगुनाह बैठा हूँ तेरी कोतवाली में...

रविकुमार

©Ravi Kumar Panchwal

नही मिलता अब सुकूं  दुनिया और दुनियादारी में, पल पल जैसे जलता है मन की बेकरारी में, मैं क्या हूँ, क्यों हूँ ? समझ नहीं आता, बस भटकता फिरता हूँ ज़माने की बदहाली में. ऐ ख़ुदा अब तू राह दिखा  बेगुनाह बैठा हूँ तेरी कोतवाली में... रविकुमार ©Ravi Kumar Panchwal

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