नही मिलता अब सुकूं
दुनिया और दुनियादारी में,
पल पल जैसे जलता है
मन की बेकरारी में,
मैं क्या हूँ, क्यों हूँ ? समझ नहीं आता,
बस भटकता फिरता हूँ ज़माने की बदहाली में.
ऐ ख़ुदा अब तू राह दिखा
बेगुनाह बैठा हूँ तेरी कोतवाली में...
रविकुमार
©Ravi Kumar Panchwal
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