जो आंखों में है गम, उसको छुपाना आ गया है।
हमें भी बेवजह ही, मुस्कुराना आ गया है।
कोई हीरा, कोई पत्थर, कोई है कांच जैसा,
मेरी नजरों में अब, सारा जमाना आ गया है।
जो बातें तीर की भांति, हैं दिल को भेद देती,
वो बातें सच कहूं, तो भूल जाना आ गया है।
जो बोया है उसी को ही, यहां पर काटते हैं,
मेरी भी डायरी में ये फ़साना आ गया है।
कहीं छूटा है वो बचपन, वो मेरा चुलबुलापन,
कई राज़ों को अब दिल में, दबाना आ गया है।
नहीं चाहिए कोई जिसको, मैं अपना गम बताऊं,
मेरी कविता को मेरी पीर गाना आ गया है।
सान्या राय