#OpenPoetry "the silent love" "एक इश्क़ ऐसा भी"

"#OpenPoetry "the silent love" "एक इश्क़ ऐसा भी" तमाम उम्र वो लिखती रही ख़ामोशी से ज़िन्दगी के हसीन लम्हों को, महसूस करती रही बंद पलकों के पीछे छुपे ख्वाबों को, कभी कह ही नहीं सकी "इश्क़ "है उसे, बिछड़ने का भी ना उसको मलाल रहा, सुकून था उसे "साँसों" को "महबूब" समझकर!!! तमाम उम्र वो पढ़ता रहा उसकी हर ख़ामोश गज़ल को, महसूस करता रहा हर हर्फ़ में छुपे जज्बातों को, ख़्वाब उसने सँजोये ही नहीं, "इश्क़" था उसे भी मग़र उम्मीद के पंख उसने लगाए ही नहीं, पा लेने का भी ना उसका कोई अरमान था, खुश था वो "धड़कनों" को "महबूब "समझकर!!!"

 #OpenPoetry   "the silent love"
"एक इश्क़ ऐसा भी"


तमाम उम्र वो लिखती रही ख़ामोशी से
ज़िन्दगी के हसीन लम्हों को,
महसूस करती रही
बंद पलकों के पीछे छुपे ख्वाबों को,
कभी कह ही नहीं सकी
"इश्क़ "है उसे,
बिछड़ने का भी 
ना उसको मलाल रहा,
सुकून था उसे
"साँसों" को "महबूब" समझकर!!!

                       
      तमाम उम्र वो पढ़ता रहा
उसकी हर ख़ामोश गज़ल को,
महसूस करता रहा
हर हर्फ़ में छुपे जज्बातों को,
ख़्वाब उसने सँजोये ही नहीं,
"इश्क़" था उसे भी
मग़र  
उम्मीद के पंख उसने लगाए ही नहीं,
पा लेने का भी ना उसका
कोई अरमान था,
खुश था वो
"धड़कनों" को "महबूब "समझकर!!!

#OpenPoetry "the silent love" "एक इश्क़ ऐसा भी" तमाम उम्र वो लिखती रही ख़ामोशी से ज़िन्दगी के हसीन लम्हों को, महसूस करती रही बंद पलकों के पीछे छुपे ख्वाबों को, कभी कह ही नहीं सकी "इश्क़ "है उसे, बिछड़ने का भी ना उसको मलाल रहा, सुकून था उसे "साँसों" को "महबूब" समझकर!!! तमाम उम्र वो पढ़ता रहा उसकी हर ख़ामोश गज़ल को, महसूस करता रहा हर हर्फ़ में छुपे जज्बातों को, ख़्वाब उसने सँजोये ही नहीं, "इश्क़" था उसे भी मग़र उम्मीद के पंख उसने लगाए ही नहीं, पा लेने का भी ना उसका कोई अरमान था, खुश था वो "धड़कनों" को "महबूब "समझकर!!!

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