आस्तिक हो और अगर मानते हो कि ईश्वर है, तो अपने अस्

"आस्तिक हो और अगर मानते हो कि ईश्वर है, तो अपने अस्तित्व की तरफ़ देखो। इस पूरे ब्रम्हांड में ये आकाशगंगा धूल का एक कण है। इस आकाशगंगा में, ये धरती तो धूल का कण भी नहीं है। तुम? तुम्हारे होने न होने से इस ब्रम्हांड को रत्ती भर अंतर नहीं पड़ता। तुम्हारे मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारे और गिरजे रहें या न रहें, इस ब्रम्हांड के चलने में कोई अंतर नहीं आएगा। तुम्हारा अस्तित्व तो मज़ाक उड़ाने लायक भी नहीं है। जो मनुष्यता इस धरती को कैंसर की तरह खा रही है, एक झटके में समाप्त हो जाएगी। सूनामी और भूकंप तुम्हारा धर्म नहीं पूछेंगे। जब महामारी आएगी, वो तुम से मंत्र या आयत पढ़वा के लौट नहीं जाएगी। ब्रम्हांड तो छोड़ ही दो। इस धरती का जीवन एक साल माना जाए, तो इंसान दिसंबर की 31 तारीख के आखिरी मिनटों में आया है। ये हमारी औकात है । हम जब अपनी ही मूर्खता से मारे जाएंगे, तब भी ये पृथ्वी रहेगी। जब तक यहाँ हो, इस धरती के एहसानमंद बन के रहो। इस कि हवा और पानी के एहसानमंद बन के रहो। उसे बचा सकते हो, तो बचा लो। वो भी धरती पर एहसान करने के लिए नहीं, अपने अस्तित्व के लिए। जीवन से इतना भी मत उकता जाओ कि वक्त काटने के लिए, एक दूसरे को काटने में लग जाओ। वैसे तो तुम्हारे नायक, धूल कण के एक हिस्से पर राज करने के लिए तुम्हारी लाशों को तराज़ू पर चढ़ा रहे हैं। फिर भी मैं तुम सब को लिख के देता हूँ कि जिस बदले के तराज़ू में तो तुम एक दूसरे की लाशें चढ़ा रहे हो, न हज़ारों साल बाद उसका काँटा बराबरी पर आया है और ना कभी बराबरी पर आएगा। बहुत कम लिखा है लेकिन काफ़ी समझ लेना।"

 आस्तिक हो और अगर मानते हो कि ईश्वर है, तो अपने अस्तित्व की तरफ़ देखो। इस पूरे ब्रम्हांड में ये आकाशगंगा धूल का एक कण है। इस आकाशगंगा में, ये धरती तो धूल का कण भी नहीं है। तुम? तुम्हारे होने न होने से इस ब्रम्हांड को रत्ती भर अंतर नहीं पड़ता। तुम्हारे मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारे और गिरजे रहें या न रहें, इस ब्रम्हांड के चलने में कोई अंतर नहीं आएगा। तुम्हारा अस्तित्व तो मज़ाक उड़ाने लायक भी नहीं है।  जो मनुष्यता इस धरती को कैंसर की तरह खा रही है, एक झटके में समाप्त हो जाएगी। सूनामी और भूकंप तुम्हारा धर्म नहीं पूछेंगे। जब महामारी आएगी, वो तुम से मंत्र या आयत पढ़वा के लौट नहीं जाएगी। ब्रम्हांड तो छोड़ ही दो। इस धरती का जीवन एक साल माना जाए, तो इंसान दिसंबर की 31 तारीख के आखिरी मिनटों में आया है। ये हमारी औकात है । हम जब अपनी ही मूर्खता से मारे जाएंगे, तब भी ये पृथ्वी रहेगी। जब तक यहाँ हो, इस धरती के एहसानमंद बन के रहो। इस कि हवा और पानी के एहसानमंद बन के रहो। उसे बचा सकते हो, तो बचा लो। वो भी धरती पर एहसान करने के लिए नहीं, अपने अस्तित्व के लिए। जीवन से इतना भी मत उकता जाओ कि वक्त काटने के लिए, एक दूसरे को काटने में लग जाओ। वैसे तो तुम्हारे नायक, धूल कण के एक हिस्से पर राज करने के लिए तुम्हारी लाशों को तराज़ू पर चढ़ा रहे हैं।

फिर भी मैं तुम सब को लिख के देता हूँ कि जिस बदले के तराज़ू में तो तुम एक दूसरे की लाशें चढ़ा रहे हो, न हज़ारों साल बाद उसका काँटा बराबरी पर आया है और ना कभी बराबरी पर आएगा। 
बहुत कम लिखा है लेकिन काफ़ी समझ लेना।

आस्तिक हो और अगर मानते हो कि ईश्वर है, तो अपने अस्तित्व की तरफ़ देखो। इस पूरे ब्रम्हांड में ये आकाशगंगा धूल का एक कण है। इस आकाशगंगा में, ये धरती तो धूल का कण भी नहीं है। तुम? तुम्हारे होने न होने से इस ब्रम्हांड को रत्ती भर अंतर नहीं पड़ता। तुम्हारे मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारे और गिरजे रहें या न रहें, इस ब्रम्हांड के चलने में कोई अंतर नहीं आएगा। तुम्हारा अस्तित्व तो मज़ाक उड़ाने लायक भी नहीं है। जो मनुष्यता इस धरती को कैंसर की तरह खा रही है, एक झटके में समाप्त हो जाएगी। सूनामी और भूकंप तुम्हारा धर्म नहीं पूछेंगे। जब महामारी आएगी, वो तुम से मंत्र या आयत पढ़वा के लौट नहीं जाएगी। ब्रम्हांड तो छोड़ ही दो। इस धरती का जीवन एक साल माना जाए, तो इंसान दिसंबर की 31 तारीख के आखिरी मिनटों में आया है। ये हमारी औकात है । हम जब अपनी ही मूर्खता से मारे जाएंगे, तब भी ये पृथ्वी रहेगी। जब तक यहाँ हो, इस धरती के एहसानमंद बन के रहो। इस कि हवा और पानी के एहसानमंद बन के रहो। उसे बचा सकते हो, तो बचा लो। वो भी धरती पर एहसान करने के लिए नहीं, अपने अस्तित्व के लिए। जीवन से इतना भी मत उकता जाओ कि वक्त काटने के लिए, एक दूसरे को काटने में लग जाओ। वैसे तो तुम्हारे नायक, धूल कण के एक हिस्से पर राज करने के लिए तुम्हारी लाशों को तराज़ू पर चढ़ा रहे हैं। फिर भी मैं तुम सब को लिख के देता हूँ कि जिस बदले के तराज़ू में तो तुम एक दूसरे की लाशें चढ़ा रहे हो, न हज़ारों साल बाद उसका काँटा बराबरी पर आया है और ना कभी बराबरी पर आएगा। बहुत कम लिखा है लेकिन काफ़ी समझ लेना।

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