#LabourDay कभी दरख़्तों को छत बनाया, कभी धूप को ओ

"#LabourDay कभी दरख़्तों को छत बनाया, कभी धूप को ओढ़ लिया, रात हुई तो अख़बार बिछाया, और आसमान ओढ़ लिया..!! मेहनत से दोस्ती रही अपनी, ग़रीबी से भी ना यारी छूटी, खुद्दारी से कमाया और खाया, रब ने जो दिया वही ओढ़ लिया.! जो मिल गया वही खा लिया, माथे को पसीने से सज़ा लिया, ख्वाबों को अपना बनाया, और थकन को ओढ़ लिया...!! हम मज़दूर हैं साहेब, हमारे बच्चे भी हम जैसे हैं, इन्होंने बापू को बिस्तर बनाया, और माँ का आंचल ओढ़ लिया..!!"

 #LabourDay  कभी दरख़्तों को छत बनाया,
कभी धूप को ओढ़ लिया,
रात हुई तो अख़बार बिछाया,
और आसमान ओढ़ लिया..!!

मेहनत से दोस्ती रही अपनी,
ग़रीबी से भी ना यारी छूटी,
खुद्दारी से कमाया और खाया,
रब ने जो दिया वही ओढ़ लिया.!

जो मिल गया वही खा लिया,
माथे को पसीने से सज़ा लिया,
ख्वाबों को अपना बनाया,
और थकन को ओढ़ लिया...!!

हम मज़दूर हैं साहेब,
हमारे बच्चे भी हम जैसे हैं,
इन्होंने बापू को बिस्तर बनाया,
और माँ का आंचल ओढ़ लिया..!!

#LabourDay कभी दरख़्तों को छत बनाया, कभी धूप को ओढ़ लिया, रात हुई तो अख़बार बिछाया, और आसमान ओढ़ लिया..!! मेहनत से दोस्ती रही अपनी, ग़रीबी से भी ना यारी छूटी, खुद्दारी से कमाया और खाया, रब ने जो दिया वही ओढ़ लिया.! जो मिल गया वही खा लिया, माथे को पसीने से सज़ा लिया, ख्वाबों को अपना बनाया, और थकन को ओढ़ लिया...!! हम मज़दूर हैं साहेब, हमारे बच्चे भी हम जैसे हैं, इन्होंने बापू को बिस्तर बनाया, और माँ का आंचल ओढ़ लिया..!!

#Labour_Day #मजदूर 🖤

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