*तन से गर जग मे रहो ,माया ममता बीच ।* दूर रखो मन स | हिंदी कविता

"*तन से गर जग मे रहो ,माया ममता बीच ।* दूर रखो मन से इसे ,ज्यों नीरज से कीच।। कहे 'किरन' बसते रहो ,बद्रीनाथ के धाम। रोम रोम हरि प्रेम हो ,मुख में हो हरिनाम।। ©Kiran Purohit"

 *तन से गर जग मे रहो ,माया ममता बीच ।*
दूर रखो मन से इसे ,ज्यों नीरज से कीच।। 
   कहे 'किरन' बसते रहो ,बद्रीनाथ के धाम।
रोम रोम हरि प्रेम हो ,मुख में हो हरिनाम।।

©Kiran Purohit

*तन से गर जग मे रहो ,माया ममता बीच ।* दूर रखो मन से इसे ,ज्यों नीरज से कीच।। कहे 'किरन' बसते रहो ,बद्रीनाथ के धाम। रोम रोम हरि प्रेम हो ,मुख में हो हरिनाम।। ©Kiran Purohit

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