White बेड़ा स्वयं ग़र्क़ करता है, घण्टा नहीं फ़र | हिंदी कविता

"White बेड़ा स्वयं ग़र्क़ करता है, घण्टा नहीं फ़र्क पड़ता है, बेमतलब की बातों पर भी, मूरख सदा तर्क करता है, अपनी ही करतूतों से वह, जन्नत जहाँ नर्क करता है, सच्चा वैद्य हरे दुःख पीड़ा, जड़ी पीस अर्क करता है, सूरज की गर्मी से मतलब, नाहक मकर कर्क करता है, अंतर्घट की प्यास बुझा लो, गुरुवाणी सतर्क करता है, 'गुंजन' विला जरूरत के भी, बस दिन-रात वर्क करता है, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra"

 White बेड़ा स्वयं  ग़र्क़ करता है, 
घण्टा नहीं फ़र्क पड़ता है,

बेमतलब की बातों पर भी, 
मूरख सदा  तर्क  करता है,

अपनी ही  करतूतों से वह, 
जन्नत जहाँ नर्क  करता है,

सच्चा वैद्य हरे दुःख पीड़ा, 
जड़ी पीस अर्क  करता है,

सूरज की  गर्मी से  मतलब, 
नाहक मकर कर्क करता है,

अंतर्घट की प्यास बुझा लो,
गुरुवाणी  सतर्क  करता है,

'गुंजन' विला जरूरत के भी, 
बस दिन-रात  वर्क करता है,
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        समस्तीपुर बिहार

©Shashi Bhushan Mishra

White बेड़ा स्वयं ग़र्क़ करता है, घण्टा नहीं फ़र्क पड़ता है, बेमतलब की बातों पर भी, मूरख सदा तर्क करता है, अपनी ही करतूतों से वह, जन्नत जहाँ नर्क करता है, सच्चा वैद्य हरे दुःख पीड़ा, जड़ी पीस अर्क करता है, सूरज की गर्मी से मतलब, नाहक मकर कर्क करता है, अंतर्घट की प्यास बुझा लो, गुरुवाणी सतर्क करता है, 'गुंजन' विला जरूरत के भी, बस दिन-रात वर्क करता है, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra

#बेड़ा स्वयं ग़र्क़ करता है#

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